घर का मुख्य द्वार और वास्तु
घर का मुख्य द्वार सभी सुखों को देने वाला होता है। यह भवन का मुख्यांग होने के कारण एक प्रकार से मुखिया है। वास्तुपद रचना के अनुसार यदि द्वार की स्थिति सही हो तो कई दोषों का स्वत: ही निवारण हो जाता है और सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य व यश-कीर्ति में वृद्धि होती है।
वास्तुशास्त्रों में द्वार की रचना पर बहुत जोर दिया गया है। द्वार को जितना सुंदर और मजबूत बनाने पर जोर है, उससे कहीं अधिक बल इस बात पर है कि यह वास्तुपद सम्मत हो। भवन की जो लंबाई चौड़ाई हो, उसे वास्तु पदानुसार आठ-आठ रेखाएं डालकर 64 पदों में बांट दें और दिशानुसार वहां द्वार रखें। यह नियम मुख्य भवन सहित चारदीवारी के प्रधान द्वार के लिए भी लागू होता है।
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